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सुबह चली मेरे साथ ही, और साथ ही साँझ ढली। मैं हर जर्रे में हूँ, और मेरा कोई वजूद नहीं। थोड़ी -थोड़ी बंटी हूँ मैं, हर जगह हर पहर। किसी के दिल किसी के दिमाग और किसी की जरूरतों में हूँ मैं। मैं हूँ हर जगह और कहीं भी नहीं। अहसास है तो साथ – साथ हूँ मैं, नहीं तो सामने होकर भी नहीं। मैं हर जगह हूँ और कही भी नहीं।
सुबह चली मेरे साथ ही, और साथ ही साँझ ढली। मैं हर जर्रे में हूँ, और मेरा कोई वजूद नहीं। थोड़ी -थोड़ी बंटी हूँ मैं, हर जगह हर पहर। किसी के दिल किसी के दिमाग और किसी की जरूरतों में हूँ मैं। मैं हूँ हर जगह और कहीं भी नहीं। अहसास है तो साथ – साथ हूँ मैं, नहीं तो सामने होकर भी नहीं। मैं हर जगह हूँ और कही भी नहीं।
ये मेरी है कहानी|
मेरा जन्म ग्रामीण परिवेश में हुआ। पिताजी अध्यापक थे और लेखन में रुचि रखते थे अतः मेरी रुचि स्वतः ही हिंदी साहित्य की तरफ हो गयी, यद्यपि मेरी शिक्षा विज्ञान विषय के साथ हुई। मैंने बनस्पति शास्त्र से परास्नातक किया। इसके तुरंत बाद विवाह बंधन में बंध गयी और परिवार की जिम्मेदारियों ने व्यस्त रखा। अब जब दोनों बच्चे कॉलेज में हैं तो समय ने पुनः याद दिलाई उस धूल खाती डायरी और लेखनी की। औऱ बस आपके सामने हूँ…
ये मेरी है कहानी|
मेरा जन्म ग्रामीण परिवेश में हुआ। पिताजी अध्यापक थे और लेखन में रुचि रखते थे अतः मेरी रुचि स्वतः ही हिंदी साहित्य की तरफ हो गयी, यद्यपि मेरी शिक्षा विज्ञान विषय के साथ हुई। मैंने बनस्पति शास्त्र से परास्नातक किया। इसके तुरंत बाद विवाह बंधन में बंध गयी और परिवार की जिम्मेदारियों ने व्यस्त रखा। अब जब दोनों बच्चे कॉलेज में हैं तो समय ने पुनः याद दिलाई उस धूल खाती डायरी और लेखनी की। औऱ बस आपके सामने हूँ…
मेरे लिए ऋषिकेश.....
एक सुखद सा एहसास है माँ के करीब उनके साथ बैठ जाना भर| निशब्द किनारे पर बैठ लहरों को सुनना जैसे वो हमसे हमारी परेशानियां, चिंताएं जान रहीं हों।
हर लहर पास रुक के कहती हो जैसे, लाडो खुश रह सब अच्छा है और अच्छा ही होगा|